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मधुशाला
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला , ' किस पथ से जाऊँ ?'  असमंजस में है वह भोलाभाला , अलग - अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ  - ' राह पकड़ तू एक चला चल ,  पा जाएगा मधुशाला। ' । ६।
सुन ,  कलकल़  ,  छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला , सुन ,  रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला , बस आ पहुंचे ,  दुर नहीं कुछ ,  चार कदम अब चलना है , चहक रहे ,  सुन ,  पीनेवाले ,  महक रही ,  ले ,  मधुशाला।।१०।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला , फेनिल मदिरा है ,  मत इसको कह देना उर का छाला , दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं , पीड़ा में आनंद जिसे हो ,  आए मेरी मधुशाला।।१४।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है ,  जिसके अंतर की ज्वाला , मंदिर ,  मसजिद ,  गिरिजे ,  सब को तोड़ चुका जो मतवाला , पंडित ,  मोमिन ,  पादिरयों के फंदों को जो काट चुका , कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
लालायित अधरों से जिसने ,  हाय ,  नहीं चूमी हाला , हर्ष - विकंपित कर से जिसने ,  हा ,  न छुआ मधु का प्याला , हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा , व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।
बने पुजारी प्रेमी साकी ,  गंगाजल पावन हाला , रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला ' ' और लिये जा ,  और पीये जा ',  इसी मंत्र का जाप करे ' मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं ,  मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
एक बरस में ,  एक बार ही जगती होली की ज्वाला , एक बार ही लगती बाज़ी ,  जलती दीपों की माला , दुनियावालों ,  किन्तु ,  किसी दिन आ मदिरालय में देखो , दिन को होली ,  रात दिवाली ,  रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला , भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला , हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती , आँखों के आगे हो कुछ भी ,  आँखों में है मधुशाला।।३२।
सुमुखी तुम्हारा ,  सुन्दर मुख ही ,  मुझको कन्चन का प्याला छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला , मैं ही साकी बनता ,  मैं ही पीने वाला बनता हूँ जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला , भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला , नाज़ ,  अदा ,  अंदाजों से अब ,  हाय पिलाना दूर हुआ , अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़  - अदाई मधुशाला।।६५।
छोटे - से जीवन में कितना प्यार करुँ ,  पी लूँ हाला , आने के ही साथ जगत में कहलाया  ' जानेवाला ', स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी , बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन - मधुशाला।।६६।
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला , रूठ रहा है मुझसे रूपसी ,  दिन दिन यौवन का साकी सूख रही है दिन दिन सुन्दरी ,  मेरी जीवन मधुशाला।।७९।
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला , पी न होश में फिर आएगा सुरा - विसुध यह मतवाला , यह अंितम बेहोशी ,  अंतिम साकी ,  अंतिम प्याला है , पथिक ,  प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।
ढलक रही है तन के घट से ,  संगिनी जब जीवन हाला पात्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला , हाथ स्पर्श भूले प्याले का ,  स्वाद सुरा जीव्हा भूले कानो में तुम कहती रहना ,  मधु का प्याला मधुशाला।।८१।
मेरे अधरों पर हो अंितम वस्तु न तुलसीदल प्याला मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला , मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना ,  कहना सच्ची मधुशाला।।८२।
मेरे शव पर वह रोये ,  हो जिसके आंसू में हाला आह भरे वो ,  जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला , दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।
और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का ,  पर प्याला कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो ,  पर हाला , प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालांे को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४।
नाम अगर कोई पूछे तो ,  कहना बस पीनेवाला काम ढालना ,  और ढलाना सबको मदिरा का प्याला , जाति प्रिये ,  पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की  धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।
शांत सकी हो अब तक ,  साकी ,  पीकर किस उर की ज्वाला , ' और ,  और '  की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला , कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता ! कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।८९।
पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में ,  पर प्याला बैठ कहीं पर जाना ,  गंगा सागर में भरकर हाला किसी जगह की मिटटी भीगे ,  तृप्ति मुझे मिल जाएगी तर्पण अर्पण करना मुझको ,  पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।

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  • 2. मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला , ' किस पथ से जाऊँ ?' असमंजस में है वह भोलाभाला , अलग - अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - ' राह पकड़ तू एक चला चल , पा जाएगा मधुशाला। ' । ६।
  • 3. सुन , कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला , सुन , रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला , बस आ पहुंचे , दुर नहीं कुछ , चार कदम अब चलना है , चहक रहे , सुन , पीनेवाले , महक रही , ले , मधुशाला।।१०।
  • 4. लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला , फेनिल मदिरा है , मत इसको कह देना उर का छाला , दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं , पीड़ा में आनंद जिसे हो , आए मेरी मधुशाला।।१४।
  • 5. धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है , जिसके अंतर की ज्वाला , मंदिर , मसजिद , गिरिजे , सब को तोड़ चुका जो मतवाला , पंडित , मोमिन , पादिरयों के फंदों को जो काट चुका , कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
  • 6. लालायित अधरों से जिसने , हाय , नहीं चूमी हाला , हर्ष - विकंपित कर से जिसने , हा , न छुआ मधु का प्याला , हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा , व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।
  • 7. बने पुजारी प्रेमी साकी , गंगाजल पावन हाला , रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला ' ' और लिये जा , और पीये जा ', इसी मंत्र का जाप करे ' मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं , मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
  • 8. एक बरस में , एक बार ही जगती होली की ज्वाला , एक बार ही लगती बाज़ी , जलती दीपों की माला , दुनियावालों , किन्तु , किसी दिन आ मदिरालय में देखो , दिन को होली , रात दिवाली , रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
  • 9. अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला , भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला , हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती , आँखों के आगे हो कुछ भी , आँखों में है मधुशाला।।३२।
  • 10. सुमुखी तुम्हारा , सुन्दर मुख ही , मुझको कन्चन का प्याला छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला , मैं ही साकी बनता , मैं ही पीने वाला बनता हूँ जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।
  • 11. दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला , भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला , नाज़ , अदा , अंदाजों से अब , हाय पिलाना दूर हुआ , अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ - अदाई मधुशाला।।६५।
  • 12. छोटे - से जीवन में कितना प्यार करुँ , पी लूँ हाला , आने के ही साथ जगत में कहलाया ' जानेवाला ', स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी , बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन - मधुशाला।।६६।
  • 13. गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला , रूठ रहा है मुझसे रूपसी , दिन दिन यौवन का साकी सूख रही है दिन दिन सुन्दरी , मेरी जीवन मधुशाला।।७९।
  • 14. यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला , पी न होश में फिर आएगा सुरा - विसुध यह मतवाला , यह अंितम बेहोशी , अंतिम साकी , अंतिम प्याला है , पथिक , प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।
  • 15. ढलक रही है तन के घट से , संगिनी जब जीवन हाला पात्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला , हाथ स्पर्श भूले प्याले का , स्वाद सुरा जीव्हा भूले कानो में तुम कहती रहना , मधु का प्याला मधुशाला।।८१।
  • 16. मेरे अधरों पर हो अंितम वस्तु न तुलसीदल प्याला मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला , मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना , कहना सच्ची मधुशाला।।८२।
  • 17. मेरे शव पर वह रोये , हो जिसके आंसू में हाला आह भरे वो , जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला , दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।
  • 18. और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का , पर प्याला कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो , पर हाला , प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालांे को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४।
  • 19. नाम अगर कोई पूछे तो , कहना बस पीनेवाला काम ढालना , और ढलाना सबको मदिरा का प्याला , जाति प्रिये , पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।
  • 20. शांत सकी हो अब तक , साकी , पीकर किस उर की ज्वाला , ' और , और ' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला , कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता ! कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।८९।
  • 21. पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में , पर प्याला बैठ कहीं पर जाना , गंगा सागर में भरकर हाला किसी जगह की मिटटी भीगे , तृप्ति मुझे मिल जाएगी तर्पण अर्पण करना मुझको , पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।