नया खतरा: अंतरिक्ष का कचरा
नए दौर में जहाँ समस्त राष्ट्र अंतरिक्ष में अपनी जगह बनाने के लिए विभिन्न अभियानों को अंजाम दे रहे हैं, वही स्पेस एक्स जैसी कंपनियां निरंतर अंतरिक्ष में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नई नई कवायद कर रही है। अभी धरती का पर्यटन से जुड़ा कचरा साफ होना ही बहुत बड़ी चुनौती है, ऐसे में अंतरिक्ष और विशेष तौर पर पृथ्वी की सतह से १६० से २००० किलोमीटर पर स्थित निम्न पृथ्वी कक्षा यानी लो अर्थ ऑर्बिट में बढ़ता कचरा भविष्य की आशंकाओं को प्रबल करता है। इस कक्षा में ही संचार, मौसम, खोजबीन उपग्रह स्थापित होते हैं और वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम दिया जाता है। इन्ही उपग्रहों के माध्यम से ईमेल, वीडियो कांफ्रेंस, पेजिंग, डेटा संप्रेक्षण समेत दैनंदिन में उपयोगी क्रियाओं का संपादन भी होता है। साथ ही उपग्रहों पर बढ़ती निर्भरता और इनके रक्षा उपयोग के कारण आने वाले दिनों में युद्ध का केंद्र भी अंतरिक्ष बन जाए, इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भारत समेत अमेरिका, रूस और चीन के पास दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट करने की सफल तकनीक उपलब्ध है, जिसके माध्यम से दुश्मन देश के उपग्रहों द्वारा जासूसी अथवा संचार प्रणाली को प्रभावित करने की अवस्था में सजीव उपग्रहों का भी विनाश किया जा सकता है। अंतरिक्ष में बढ़ती इस लड़ाई के कारण भी वहाँ मलबे का बढ़ना लाज़मी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के विश्लेषण एवं अनुसंधान हेतु अंतरिक्ष एवं उपग्रहों का उपयोग एक सामान्य प्रक्रिया हो गई है। 50 वर्ष पूर्व जब भारत ने आर्यभट्ट उपग्रह का प्रक्षेपण किया था तो वो है एक महान उपलब्धि के रूप में माना गया था, किंतु वर्तमान में उपग्रहों का प्रक्षेपण एक सामान्य प्रक्रिया हो गयी है
अभी कुछ वर्ष पहले स्पेस लैब के भारत भू भाग पर गिरने की आशंका मात्र से ही बड़ी चिंता उत्पन्न हो गई थी। ऐसे में अंतरिक्ष का बढ़ता पर्यटन और राष्ट्रों की होड़ इसे किस दिशा में ले जाएगी, यह मात्र कयास का ही विषय है। विभिन्न राष्ट्रों द्वारा अंतरिक्ष पर्यटन एवं परीक्षणों को निजी क्षेत्र के लिए खोल देने से जहाँ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, वहीं नए प्रकार के कचरे की समस्या भी पैदा हो जाएगी।
बढ़ते अंतरिक्ष उपयोग के कारण विभिन्न प्रकार का मलबा एवं कचरा कक्ष में व्यापक होता जा रहा है। इनमें जहाँ मानव निर्मित कचरा एक समस्या है, वही बड़ी समस्या उपग्रहों के कारण इकट्ठा होता बड़े से छोटे आकार का मलबा है, जो मूलतः उपग्रहों के निष्क्रिय होने, रॉकेट अवशेष, उपकरणों एवं अन्य संबंधित वस्तुओं के अंतरिक्ष में ही रह जाने के कारण उत्पन्न होता है। ये बड़े आकार वाले मलबे के कण जहाँ अंतरिक्ष यानों एवं उपग्रहों से टकराकर बड़ी क्षति का कारण बन सकते हैं, वहीं वर्तमान में नहीं दिखने वाले छोटे आकार के मलबा कण वायुमंडल के प्रदूषण का कारक बन सकते हैं।
अंतरिक्ष में उपग्रह एवं उपकरणों के बढ़ते घनत्व के कारण आपसी टकराहट के साथ साथ अंतरिक्ष की कक्षाओं के क्षरण होने की प्रबल आशंका रहती है। इसके चलते भविष्य में अंतरिक्ष में भी यातायात अवरुद्ध होने की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। यदि उपग्रह परिचालन में निर्धारित कक्ष अथवा गति संबंधी अवरोध होता है तो लक्षित गतिविधियाँ परिणाम नहीं दे पाती हैं। विदित ही है कि समस्त अंतरिक्ष मिशन अत्यंत खर्चीले होते हैं और उनकी असफलता राष्ट्रीय संसाधनों को प्रभावित करती है।
मलबे की इस नई समस्या का सार्थक हल ढूंढने के लिए समस्त राष्ट्र प्रयासरत भी है। अंतरिक्ष में मलबे की समस्या को हल करने के लिए जहाँ पुनः उपयोग में लाए जाने वाले रॉकेट आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर निष्क्रिय होते उपग्रहों एवं अवशेषों के लिए गहन निगरानी प्रणाली के साथ उनके टकराने से पूर्व ही मार्ग को बदलने जैसी दूरस्थ तकनीक पर निरंतर शोध किया जा रहा है। लेकिन अभी भी अंतरिक्ष की कक्षा से मलबे को वैज्ञानिक तरीके से हटाना चुनौती बना हुआ है। वहाँ उत्पन्न होने वाले कचरे के लिए मानदंड स्थापित करते हुए उसमें न्यूनतम स्तर को प्राप्त करना प्राथमिकता है। सस्टेनेबिलिटी की चर्चा पृथ्वी के संदर्भ में तो होती ही है, लेकिन अभी अंतरिक्ष क्षेत्र भी नवीन लक्ष्यों में सम्मिलित है।
उपकरणीय मलबे के साथ मानव निर्मित कचरा भी अंतरिक्ष की समस्या है। वर्तमान में अधिकांशतया मल मूत्र को भी वापसी तक एकत्रित करके रखा जाता है एवं लौटते हुए जलाकर निस्तारण होता है। कई बार अंतरिक्ष यानों में मूत्र को एकत्रित कर साफ़ पानी में परिवर्तित करा जाता है। वर्तमान काल में अंतरिक्ष में लंबी अवधि और स्थायी आवास की परिकल्पना के मध्य भविष्य की कचरा प्रबंधन संबंधी समस्या को भी दृष्टिगत किया जा रहा है। मल मूत्र के अतिरिक्त बची हुई खाद्य सामग्री एवं उसके पैकेट समस्या के कारक हैं। इसी कड़ी में गत वर्ष अंतरिक्ष का सर्वाधिक उपयोग करने वाली अमेरिकी संस्था नासा ने लूना रीसायकल चैलेंज के माध्यम से अंतरिक्षीय मलबे एवं कचरे की समस्या का पुनःचक्रण हल ढूंढने के लिए लगभग ₹25 करोड़ के पुरस्कार की घोषणा भी की है, ताकि इकट्ठे होते हुए मलबे को हटाया जा सके ओर उपग्रहों एवं अंतरिक्ष पर्यटन का मुक्त रूप से विचरण हो सके। इस पुरस्कार के माध्यम से नासा का उद्देश्य शहर की पृथ्वी और अंतरिक्ष में आविष्कारों एवं शोध के साथ सस्टेनेबिलिटी का हर कदम पर ध्यान रखा चालक खाकी चन्द्रमा एवं पृथ्वी पर उन अनुसन्धानों को सृष्टि के लाभ हेतु परावर्तित किया जा सके। इस पुरस्कार के तहत ठोस कचरे के चंद्रमा की सतह पर पुनः चक्रण हेतु डिज़ाइन एवं हार्डवेयर के विकास तथा डिजिटल ट्रैक द्वारा संपूर्ण पुनःचक्रण प्रणाली एवं अंतिम उत्पाद का मॉडल तैयार करने को पुरस्कृत किया जाएगा।
पृथ्वी की समस्या शनैः शनैः अंतरिक्ष की ओर आमुख होती जा रही है। मानव सृष्टि की अंतरिक्षीय उपकरणों पर बढ़ती निर्भरता के मध्य नवीन चुनौतियां जन्म ले रही हैं।
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3moVery useful and futuristic Article Dr Sahib.. Seriousness of this challenge is much higher for all humanity and all advancements. Am happy to be part of one such important mission led by Space Scientist Dr Sudarshan under his new venture NABHAH. Pls look at this https://nabhah.org/