लगने लगी फ़ास्ट फैशन पर रोक
आख़िरकार फ़ास्ट फैशन से हो रहे पर्यावरण पर नुकसान की समझ दुनिया में आने लगी है।इस दिशा में पहल करते हुए सर्वप्रथम फ्रांस ने फ़ास्ट फैशन पर प्रतिबंध संबंधी क़ानून लागू किया है। यह ना सिर्फ़ समूचे विश्व के लिए मिसाल होगा बल्कि कपड़ों से हो रहे पर्यावरण पर घातक प्रभाव को रोकने में मददगार भी होगा। पर्यावरण के प्रति सरोकार में पहले भी फ्रांस ने अनुकरणीय कदम उठायें हैं जैसे खाद्य बर्बादी को रोकने के लिए क़ानून बनाने वाला पहला देश भी वही है। वैश्विक रूप से प्रदूषण के अहम कारक प्लास्टिक से हो रही जंग के चलते फ़ास्ट फैशन ने अपना विकराल स्वरूप ले लिया। प्लास्टिक के पुनःचक्रण की कवायद तो हर ओर है, इसको बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्य भी निर्धारित किए जा रहे हैं। लेकिन यदि वस्त्र की बात की जाए तो कुल मिलाकर १ प्रतिशत से भी कम कपड़ा पुनःचाकृत हो रहा है। बिडम्बना यह है कि हर वय का व्यक्ति आधुनिकता की इस दौड़ में कपड़ों से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान के प्रति अभी भी सावचेत नहीं है, क्योंकि उसे तो कचरे के जैसे देखा ही नहीं जाता।आमजन को तो संभवतया इस बात का एहसास भी नहीं है कि एक सूती (कॉटन) शर्ट के बनने में लगभग २७०० लीटर पानी का उपयोग होता है। कॉटन के अतिरिक्त अन्य सामग्री से बनने वाले कपड़े में तो पानी का उपयोग अपेक्षाकृत तौर पर कई गुणा तक होता है। इसी प्रकार सबसे ज़्यादा पहनी जाने वाली जींस को बनाने में साढ़े सात हज़ार लीटर से अधिक पानी खर्च होता है।
एक अध्ययन के अनुसार सन २००० से २०१५ के मध्य जहाँ कपड़ो का विक्रय दोगुने से भी अधिक हो गया वहीं इसका औसत उपयोग लगभग ३६% तक गिर गया, यानी ख़रीदे गए कपड़े की कूड़े में आने की गति बढ़ गई। तथ्य यह भी है की कपड़ों की प्रति व्यक्ति ख़रीद औसतन ६०% से भी अधिक बढ़ गई है।कारण सुलभता, समय के साथ बदलाव की चाह और सस्ता होना है।वर्तमान युग में वस्त्र निर्माण में लिए जा रहे मटेरियल की गुणवत्ता तो विचारणीय बिंदु रहा ही नहीं।
बीते कुछ वर्षों में फ़ास्ट फैशन की अंधाधुंध दौड़ के चलते हर ओर कपड़ों से उत्पन्न कचरे की भरमार हो रही है। इसकी विभीषिका का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि नित नए बदलते फैशन की चलते विश्व में हर सेकंड एक ट्रक भार जितना कपड़ा अर्थात् वस्त्रनिर्माण की लगभग ९० प्रतिशत सामग्री कचरागाह में पहुँच रही है। गणना के अनुसार लगभग साढ़े नौ करोड़ टन कचरा मात्र कपड़ों के फैशन उद्योग के कारण है, जो इसे तेल खनन के बाद सर्वाधिक प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग की श्रेणी में ला खड़ा करता है। प्रदूषण का एक बड़ा पैमान वातावरण में कार्बन उत्सर्जन रहता है, उसमे भी फैशन का योगदान १० प्रतिशत से अधिक है।इसी क्रम में जीवन के लिए वायु के पश्चात् सर्वाधिक महत्वपूर्ण पानी की बर्बादी में भी वस्त्र निर्माण उद्योग कुल बर्बादी के पाँचवे हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है। दुनिया की एक बड़ी चिंता महासागरों में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक को लेकर भी है। इस चिंता के पीछे समुद्री जीवों का जीवन प्रभावित होने के साथ समुद्री भोजन पर निर्भर बड़ी आबादी में माइक्रोप्लास्टिक के अप्रत्यक्ष रूप से पहुँचने को लेकर है। इसमें भी ३५-४०% का बड़ा हिस्सा वस्त्रों के बिना सोचे समझे क्रय और उपयोग के कारण है। बदलते फैशन में जहाँ रासायनिक रंगों आदि का बहुतायत से उपयोग होता है वहीं, पशुधन भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। अनेकानेक अध्ययनों के अनुसार फ़ास्ट फैशन उद्योग में कार्यरत श्रमिकों का जीवन भी चुनौतीपूर्ण होता है, कम लागत उत्पाद के निर्माण करने की कवायद में उन्हें कम पारिश्रमिक और खतरनाक वातावरण में कार्य करना होता है।
अपनी भयावहता और भविष्य की गंभीरता के बावजूद पूरी दुनिया में फ़ास्ट फैशन उद्योग अनियंत्रित तौर पर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।उपभोक्ताओं का प्रतिसाद मिलने और कानूनी नियंत्रण ना होने से नित नयी ब्रांड और उसके असीमित आउटलेट शहरी विकास के प्रतिबिम्ब बन गए हैं। शहरी आबादी की देखादेख और उनके जैसा दिखने की होड़ में ग्रामीण आबादी भी त्वरित फैशन की चपेट में आए बिना नहीं रह पायी है।
इस पृष्ठभूमि में फ्रांस की पहल निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है। इस नए कानून के तहत पर्यावरण के मानदंड के अनुरूप उत्पादन नहीं करने वाले ब्रांड्स के विज्ञापनों पर पूर्ण पाबंदी लगायी गई है। एक महत्वपूर्ण प्रावधान के तहत हर कपड़े पर इको स्कोर लेबल लगाना क़ानून रूप से ज़रूरी होगा ताकि ख़रीदनेवाले को उक्त वस्त्र के पर्यावरणीय प्रभाव की जानकारी हो सके और उचित सामग्री का क्रय कर सके।विभिन्न शोधों के अनुसार जानकारी होने पर, ७०% से अधिक उपभोक्ता इको फ्रेंडली उत्पाद के लिए अधिक लागत देने की मंशा भी रखते है।कानून में पारदर्शिता को महत्व देते हुए वस्त्रों के निर्माण, परिवहन, विक्रय , विक्रय पश्चात पुनःचक्रण या उपयोग आदि स्तरों पर कार्बन उत्सर्जन की गणना को जाहिर करने के साथ भविष्य में उत्सर्जन को नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की रणनीति तय करने को आवश्यक किया है।कानून की अवहेलना करने वाली कंपनियों को इस वर्ष से प्रति आइटम ५ यूरो का दंड देना होगा जो पाँच वर्ष पश्चात १० यूरो प्रति आइटम हो जाएगा।
आशा है, नए क़ानून के चलते कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आएगी और कम से कम यूरोपियन यूनियन द्वारा शीघ्र अनुसरण भी किया जाएगा। सांस्कृतिक तौर पर भारत के मूल में दिखावटीपन नहीं रहा, किंतु वैश्वीकरण के चलते सभी उस बहाव में बहने लग गए। यह समस्या यूरोप या विकसित राष्ट्रों तक सीमित ना रहकर सर्वव्यापी हो गई है। इससे पहले की विकरालता मानवता के लिए संकट बने, भारत सरकार को “मिशन लाइफ” में वस्त्र संबंधी कूड़े पर नियंत्रण हेतु प्रभावी रणनीति के साथ तत्संबंधी क़ानून लागू करना समय की माँग है।